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दिनेश कुकरेती
आज गुरुवार है। उत्साह का दिन। कोविड-19 पर केंद्रित प्रेस क्लब की त्रैमासिक पत्रिका "गुलदस्ता" का मुख्यमंत्री आवास पर उन्हीं के हाथों विमोचन होना है। साढे़ ग्यारह बजे का वक्त तय है। मुझे पहले प्रेस क्लब पहुंचना है। वहां से अन्य साथियों के साथ सीएम आवास जाने का कार्यक्रम है। हालांकि, बुधवार शाम सीएम आवास से विमोचन का कार्यक्रम सुबह दस बजे रखे जाने की बात कही गई, लेकिन बाद में सूचना दी गई कि कार्यक्रम एक घंटे बाद होगा। मैं भी ऐसा ही चाह रहा था। खैर! मैं ठीक दस बजे प्रेस क्लब पहुंच गया और तकरीबन ग्यारह बजे हम सभी लोग सीएम आवास के बाहर खडे़ थे।
अंदर जाने के लिए चेकिंग वगैरह कुछ औपचारिकताएं पूरी की जानी थी, सो 15-20 मिनट इसी में लग गए। मन में कोफ़्त हो रही थी, लेकिन अपने हाथ में कुछ नहीं था, सो चुप रहना ही बेहतर समझा। हालांकि, सच यह है कि इस सारे दिखावे की जरूत ही नहीं थी, क्योंकि सीएम आवास में मौजूद अधिकांश कार्मिक हम सभी दस लोगों से अच्छी-तरह परिचित हैं। अक्सर एक-दूसरे से मुलाकात भी होती रहती है। पर...किया क्या जा सकता था। इसी बीच अंदर से फरमाया आया कि हम सभी सभागार में पहुंच जाएं। पांच-दस मिनट बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी हमारे बीच थे। पत्रिका और उसमें छपी सामाग्री के बारे में कुछ औपचारिक बातें हुईं और फिर विमोचन।
पत्रिका की विषय-वस्तु से मुख्यमंत्री खासे प्रभावित दिखे और भरोसा दिलाया आगे भी हम ऐसा ही गंभीर एवं सार्थक प्रयास करते हैं तो उनकी ओर से पूरा सहयोग किया जाएगा। हमारे लिए यह निश्चित रूप से उत्साहवर्द्धन वाली बात थी। हालांकि, "गुलदस्ता" के इस अंक को तैयार करने में मुझे जमकर पसीना बहाना पडा़। कई दिन तो ऐसे भी गुजरे, जब सुबह दस बजे रूम से निकल पड़ता था और रात बारह बजे के आसपास ही लौटना होता था। पर, संतुष्टि इस बात की है कि पत्रिका संग्रहणीय बन पडी़ है। इसमें छपी सामाग्री निश्चत रूप से भविष्य की पीढी़ का मार्गदर्शन करेगी।
बहरहाल! विमोचन के बाद हम प्रेस क्लब लौट आए। दोपहर के एक बज चुके थे। क्लब की कैंटीन में दोपहर का भोजन भी तैयार हो चुका था। सो, भलाई इसी में थी कि मैं भोजन करके ही आफिस का रुख करूं। अन्यथा आठ-दस घंटे भूखे ही गुजारने पड़ते। कारण, नौकरी से तो कोई समझौता किया नहीं जा सकता और रूम में जाकर खाना बनाने का अब वक्त नहीं है। वैसे, अब मैं ऐसी परिस्थितियों से विचलित नहीं होता, बल्कि इनका भरपूर आनंद लेता हूं। इनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
07-10-2020
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"Guldasta" in your hand
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Dinesh Kukreti
Today is Thursday. A Day of Excitement. The press club's quarterly magazine "Guldasta", centered on Kovid-19, is to be released at the Chief Minister's residence. The time is fixed at half past eleven. I want to reach the press club first. There is a program to go to CM residence with other colleagues from there. However, it was said that the program of release from CM house was scheduled to be held at 10 am on Wednesday evening, but later it was reported that the program would be one hour later. I also wanted the same. Well! I reached the Press Club at exactly ten o'clock and around eleven o'clock we all stood outside the CM residence.
Some formalities had to be completed to check in, etc., so it took 15-20 minutes. It was getting cold in my mind, but there was nothing in my hand, so it was better to keep quiet. However, the truth is that all this appearance was not necessary, because most of the personnel present in CM house are well aware of all ten of us. Often they also meet each other. But ... what could be done. Meanwhile, we came from inside to say that all of us should reach the auditorium. Five-ten minutes later Chief Minister Trivendra Singh Rawat was also among us. There was some formal talk about the magazine and the contents in it and then released.
The Chief Minister appeared impressed with the content of the magazine and assured that even if we make such a serious and meaningful effort, full cooperation will be done on his behalf. It was definitely an encouraging thing for us. However, in preparing this issue of "Guldasta", I had to sweat a lot. Many days passed like this, when one had to leave the room at ten o'clock in the morning and had to return only around twelve o'clock at night. But the satisfaction is that the magazine has become a collectible. The material printed in it will definitely guide the future generations.
However! After the release we returned to the Press Club. It was one o'clock in the afternoon. Lunch in the canteen of the club was also ready. So, it was good that I should go to the office after having food. Otherwise eight - ten hours would have to be spent hungry. Because, no compromise can be made with the job and now is not the time to go and cook in the room. By the way, now I do not get distracted by such situations, but rather enjoy them to the fullest. I get to learn a lot from them.
07-10-2020
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